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ग़ज़ल
आशिक़ सा तो सादा कोई और न होगा दुनिया में
जी के ज़ियाँ को इश्क़ में उस के अपना वारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
मुझ में वो शख़्स हो चुका जिस का कोई हिसाब था
सूद है क्या ज़ियाँ है क्या इस का सवाल भी नहीं
जौन एलिया
ग़ज़ल
इसी कौकब की ताबानी से है तेरा जहाँ रौशन
ज़वाल-ए-आदम-ए-ख़ाकी ज़ियाँ तेरा है या मेरा