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ग़ज़ल
जंगलों में जुस्तुजू-ए-क़ैस-ए-सहराई करूँ
कब तलक ढूँडूँ कहाँ तक जादा-पैमाई करूँ
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
कोहकन और क़ैस मिल जाएँ तो मैं उन से कहूँ
ले गए क्या साथ ही क़ब्रों में तुम तासीर-ए-इश्क़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
मिरे सफ़ीने को साहिल की जुस्तुजू ही नहीं
सितम ये है किसी तूफ़ाँ का इंतिज़ार भी है
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
ज़बान-ए-'क़ैस' पे हर वक़्त तेरी बातें हैं
ज़बान-ए-क़ैस जो सीखूँ तो तुझ से बात करूँ