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ग़ज़ल
करा तो लूँगा इलाक़ा ख़ाली मैं लड़-झगड़ कर
मगर जो उस ने दिलों पे क़ब्ज़े किए हुए हैं
ज़िया मज़कूर
ग़ज़ल
चलते चलते न ख़लिश कर फ़लक-ए-दूँ से 'नज़ीर'
फ़ाएदा क्या है कमीने से झगड़ कर चलना
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मुफ़्त ले लेते हैं दिल आशिक़ से अपने वो 'निज़ाम'
लाख फिर माँगे कोई थक कर झगड़ कर बैठ जाए
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
मैं रोज़ ख़ुद से झगड़ के ख़ुद को मना रही हूँ
हाँ मेरी मुझ से ठनी हुई है तो ज़िंदगी है