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ग़ज़ल
'आरज़ू' जाने भी कैसे कोई रुत्बा माँ का
रू-ए-जन्नत से हसीं लगता है तलवा माँ का
आरज़ू अशरफ़ सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
क्या क्या फ़ित्ने सर पर उस के लाता है माशूक़ अपना
जिस बे-दिल बे-ताब-ओ-तवाँ को इश्क़ का मारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
गो दावा-ए-तक़्वा नहीं दरगाह-ए-ख़ुदा में
बुत जिस से हों ख़ुश ऐसा गुनहगार नहीं हूँ
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मिरी आरज़ू की दुनिया दिल-ए-ना-तवाँ की हसरत
जिसे खो के शादमाँ थे उसे आज पा के रोए