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ग़ज़ल
ज़ख़्म की सूरत नज़र आते हैं चेहरों के नुक़ूश
हम ने आईनों को तहज़ीबों का मक़्तल कर दिया
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
इक़बाल सुहैल
ग़ज़ल
जिस में तहज़ीबों के गुल साथ खिला करते थे
फिर मिरे मुल्क की वो आब-ओ-हवा हो जाऊँ
लोकेश कुमार सिंह
ग़ज़ल
तहज़ीबों के जंगल में ये कैसा मोहज़्ज़ब आक़ा है
जिस ने हर इंसान की क़ीमत सिर्फ़ इक गोली रक्खी है
सय्यद आशूर काज़मी
ग़ज़ल
ग़ुलाम मुस्तफ़ा दाइम
ग़ज़ल
भूक इफ़्लास से तहज़ीबों के दिल बोझल हो जाते हैं
खेत उजड़ जाएँ तो बस्ते आँगन जंगल हो जाते हैं