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ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
दोस्तों की कज-अदाई मैं भी लज़्ज़त है 'शकील'
दोस्त वो है दोस्त बन कर जो दग़ा देने लगे
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
जो थी कल वो आज है ज़िंदगी अभी ला-'इलाज है ज़िंदगी
कि मसीह-ए-अस्र के पास उस की दवा न हो कहीं यूँ न हो
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
दिल ले के दग़ा देते हैं इक रोग लगा देते हैं
हँस-हँस के जला देते हैं ये हुस्न के परवाने को
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
पुर-ग़ुरूर ओ पुर-तकब्बुर पुर-जफ़ा ओ पुर-सितम
पुर-फ़रेब ओ पुर-दग़ा पुर-मक्र ओ पुर-फ़न आप हैं
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
यार से मेरी जो करते हैं सिफ़ारिश अग़्यार
मक्र है उज़्र है क़ाबू है दग़ा है क्या है