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ग़ज़ल
'असद' जमइयत-ए-दिल दर-किनार-ए-बे-ख़ुदी ख़ुश-तर
दो-आलम आगही सामान-ए-यक-ख़्वाब-ए-परेशाँ है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
वो जिस के अश्क खींच कर सफ़र से लाए थे हमें
हमारे आँसुओं को दरकिनार कर चला गया
ज़ोहेब फ़ारूक़ी अफ़रंग
ग़ज़ल
वो बहार-अफ़रोज़ आँचल सद गुलिस्ताँ दरकिनार
वो बहिश्त-ए-आरज़ू रंगीं-क़बा कल रात को
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
सभी ने छोड़ दिया मुझ को दरकिनार किया
तुम्हारे बाद मिरे ज़ख़्म ने उभार किया
मोहम्मद यासिर मुस्तफ़वी
ग़ज़ल
इक़तिज़ा-ए-असर-ए-नौ है ज़िंदगी तो दरकिनार
मौत को भी हुस्न के साँचे में ढलना चाहिए