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ग़ज़ल
दीन से दूर, न मज़हब से अलग बैठा हूँ
तेरी दहलीज़ पे हूँ, सब से अलग बैठा हूँ
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
वो खड़ा है एक बाब-ए-इल्म की दहलीज़ पर
मैं ये कहता हूँ उसे इस ख़ौफ़ में दाख़िल न हो