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ग़ज़ल
हम तो जब जानें कि काम आए मुसीबत में कोई
वर्ना यूँ कहने को दुनिया में हैं लाखों जाँ-निसार
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
हुस्न-ए-जानाँ की कशिश दुनिया में बाक़ी रह गई
बद-नसीबी से हमारी उड़ गई तासीर-ए-इश्क़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ख़त-ए-तक़्दीर से बेहतर मैं समझूँ इस को दुनिया में
तू लिखवा लाए गर क़ासिद बुत-ए-बे-पीर से काग़ज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
करेंगे ज़ुल्म दुनिया पर ये बुत और आसमाँ कब तक
रहेगा पीर ये कब तक रहोगे तुम जवाँ कब तक
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
कैसी मुसीबत है ये गुल को ख़मोशी का शौक़
बुलबुल-ए-बेताब को हर्ज़ा-सराई का इश्क़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
है 'शकील-इब्न-ए-शरफ़' के दिल में बस ये आरज़ू
हश्र में दुनिया कहे इस को दिवाना आप का
शकील इबन-ए-शरफ़
ग़ज़ल
ये नहीं या वो नहीं या तुम नहीं या हम नहीं
कौन इस दुनिया में ऐसा है कि जिस को ग़म नहीं
शकील इबन-ए-शरफ़
ग़ज़ल
कितनी दिलकश है दिल-अफ़रोज़ है दुनिया-ए-दनी
अपनी आँखों से ज़रा हाथ हटा कर देखो