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ग़ज़ल
अगर 'सय्यद' मिरे लब पर मोहब्बत ही मोहब्बत है
तो फिर भी किस लिए नफ़रत का धारा साथ रहता है
वसी शाह
ग़ज़ल
सच्चाई है अमृत धारा सच्चाई अनमोल सहारा
सच के रस्ते चल के सब ने ठोर ठिकाने पाए हैं
जमील अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
जिस की जल-धारा से बस्ती वाले जीवन पाते थे
रस्ता बदलते ही नद्दी के वो बस्ती भी ख़त्म हुई
ताहिर फ़राज़
ग़ज़ल
ख़ुद ज़माना रुख़ हमारा देखता है हम नहीं
जिस तरफ़ मुड़ते हैं हम धारा भी मुड़ता जाए है