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ग़ज़ल
फ़न्न-ए-मौसीक़ी से वाबस्ता है अपनी शायरी
हम ग़ज़ल पढ़ते हैं ऐ 'नग़्मा' हुनर के साथ-साथ
नग़मा ख़ैराबादी
ग़ज़ल
कर बैठे तर्क-ए-इश्क़ हम चाक-ए-गरेबाँ सी लिया
'नग़्मा' भी ख़ुद हैरान है हम पारसा इतने न थे
रूपा मेहता नग़मा
ग़ज़ल
नहीं गर नग़्मा-ए-शादी नफ़ीर-ए-ग़म सही कोई
कि साज़-ए-ज़िंदगानी बे-सदा अच्छा नहीं लगता
मोहसिन ज़ैदी
ग़ज़ल
ग़म न खा ऐ दिल कि दुनिया का यही क़ानून है
नग़्मा-ए-शादी कहीं है नाला-ए-मातम कहीं