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ग़ज़ल
जिस दिल को तुम ने लुत्फ़ से अपना बना लिया
उस दिल में इक छुपा हुआ नश्तर ज़रूर था
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
जज़्ब-ए-वहशत तिरे क़ुर्बान तिरा क्या कहना
खिंच के रग रग में मिरे नश्तर-ए-फ़स्साद आया
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
गरचे हूँ दीवाना पर क्यूँ दोस्त का खाऊँ फ़रेब
आस्तीं में दशना पिन्हाँ हाथ में नश्तर खुला
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
खलिश-अंगेज़ था क्या क्या तिरी मिज़्गाँ का ख़याल
टूट कर दिल में ये नश्तर रग-ए-जाँ तक पहुँचे
हफ़ीज़ होशियारपुरी
ग़ज़ल
है गुदाज़-ए-मोम अंदाज़-ए-चकीदन-हा-ए-ख़ूँ
नीश-ए-ज़ंबूर-ए-असल है नश्तर-ए-फ़स्साद याँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बहार-ए-रंग-ए-ख़ून-ए-गुल है सामाँ अश्क-बारी का
जुनून-ए-बर्क़ नश्तर है रग-ए-अब्र-ए-बहारी का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
याद-ए-मिज़्गाँ में ब-नश्तर-ए-ज़ार-ए-सौदा-ए-ख़याल
चाहिए वक़्त-ए-तपिश यक-दस्त सद-पहलू मुझे