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ग़ज़ल
नहीं नाम-ओ-निशाँ साए का लेकिन यार बैठे हैं
उगे शायद ज़मीं से ख़ुद-ब-ख़ुद दीवार बैठे हैं
अंजुम रूमानी
ग़ज़ल
मोहब्बत करने वालों का यही नाम-ओ-निशाँ होगा
जहाँ वो सर-निगूँ होंगे वहीं पे आस्ताँ होगा
रहीमुल्लाह शाद
ग़ज़ल
अब की चमन में गुल का ने नाम ओ ने निशाँ है
फ़रियाद-ए-बुलबलाँ है या शोहरा-ए-ख़िज़ाँ है