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ग़ज़ल
इस नुमाइश-गाह में कब तक हवस-कारी करूँ
कोई तोहफ़ा ले के घर चलने की तय्यारी करूँ
मिद्हत-उल-अख़्तर
ग़ज़ल
मैं जिस्मों की नुमाइश-गाह में क्या देखने जाऊँ
कि उस ने हर बदन पर अपना चेहरा रख दिया होगा
बद्र शम्सी
ग़ज़ल
फ़रेब-ए-बे-ख़ुदी की रहनुमाई के भरोसे पर
नुमाइश-गाह के हर पेच-ओ-ख़म से भी गुज़र आया
बासित उज्जैनी
ग़ज़ल
वसीम हसन मिरचाल
ग़ज़ल
सज्दा-गाह-ए-अहल-ए-दिल बा'द-ए-फ़ना हो जाइए
सफ़्हा-ए-हस्ती पे इक नक़्श-ए-वफ़ा हो जाइए