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ग़ज़ल
सभी ज़िंदगी पे फ़रेफ़्ता कोई मौत पर नहीं शेफ़्ता
सभी सूद-ख़ोर तो हो गए हैं कोई पठान नहीं रहा
शुजा ख़ावर
ग़ज़ल
लड़ते लड़ते आख़िर इक दिन पंछी की ही जीत हुई
प्राण पखेरू ने तन छोड़ा ख़ाली पिंजरा छूट गया
दीप्ति मिश्रा
ग़ज़ल
पान खा कर सुर्मा की तहरीर फिर खींची तो क्या
जब मिरा ख़ूँ हो चुका शमशीर फिर खींची तो क्या
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
तुम्हारे लब की सुर्ख़ी लअ'ल की मानिंद असली है
अगर तुम पान ऐ प्यारे न खाओगे तो क्या होगा