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ग़ज़ल
मुझे आज इतनी नफ़रत से न देखती ये दुनिया
जो पढ़ाई से ज़रा भी मिरे दिल को प्यार होता
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
शैख़-ए-मक्का ने पढ़ाई है जनाज़े की नमाज़
लोग समझे मुझे क्या जानिए क्या मेरे बा'द
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
हम समझते हैं पढ़ाई हुई बातें न करो
तिफ़्ल-ए-मकतब हो तुम ऐ जाँ अभी उस्ताद हैं हम