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ग़ज़ल
हम दोनों मिल कर भी दिलों की तन्हाई में भटकेंगे
पागल कुछ तो सोच ये तू ने कैसी शक्ल बनाई है
जौन एलिया
ग़ज़ल
ये दिल ये पागल दिल मिरा क्यूँ बुझ गया आवारगी
इस दश्त में इक शहर था वो क्या हुआ आवारगी
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
अभी इक शोर-ए-हा-ओ-हू सुना है सारबानों ने
वो पागल क़ाफ़िले की ज़िद में पीछे रह गया होगा