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ग़ज़ल
रंग-ए-ज़ुल्म-ए-दस्त-ए-वहशत जब नुमायाँ हो गया
मंज़र-ए-क़ौस-ए-क़ुज़ह चाक-ए-गरेबाँ हो गया
क़द्र ओरैज़ी
ग़ज़ल
दस्त-ए-पुर-ख़ूँ को कफ़-ए-दस्त-ए-निगाराँ समझे
क़त्ल-गह थी जिसे हम महफ़िल-ए-याराँ समझे
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
दुआ-ए-दस्त-ए-फ़ज़ीलत से सर की रौनक़ है
हमारे घर के बुज़ुर्गों से घर की रौनक़ है
अशहद करीम उल्फ़त
ग़ज़ल
वो जो फूल थे तिरी याद के तह-ए-दस्त-ए-ख़ार चले गए
तिरे शहर में भी सुकून है तिरे बे-क़रार चले गए
अजय सहाब
ग़ज़ल
ख़िश्त पुश्त-ए-दस्त-ए-इज्ज़ ओ क़ालिब आग़ोश-ए-विदा'अ
पुर हुआ है सैल से पैमाना किस ता'मीर का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मिरी क़िस्मत लिखी जाती थी जिस दिन मैं अगर होता
उड़ा ही लेता दस्त-ए-कातिब-ए-तक़दीर से काग़ज़