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ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
बुझते हुए दिए की लौ और भीगी आँख के बीच
कोई तो है जो ख़्वाबों की निगरानी करता है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
रख दिए जाएँगे नेज़े लफ़्ज़ और होंटों के बीच
ज़िल्ल-ए-सुब्हानी के अहकामात जारी हो गए
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
वही हुआ कि तकल्लुफ़ का हुस्न बीच में था
बदन थे क़ुर्ब-ए-तही-लम्स से बिखरते हुए