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ग़ज़ल
मैं बुग़्ज़ नफ़रत हसद मोहब्बत के साथ रखूँ
नहीं मियाँ मेरे दिल में इतनी जगह नहीं है
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
जलने दो उन को और उन्हें देखते रहो
इन मुनकिरों को बुग़्ज़-ए-विलायत न मार दे
सैयद जॉन अब्बास काज़मी
ग़ज़ल
बुग़्ज़ भी सीने में रखता हूँ अमानत की तरह
नफ़रतें करने पे आ जाऊँ तो हद करता हूँ मैं
इक़बाल साजिद
ग़ज़ल
सुनता हूँ रोज़-ए-हश्र न होगी उसे नजात
जो सय्यदों से बुग़्ज़ रखे वो यज़ीद है
मियाँ दाद ख़ां सय्याह
ग़ज़ल
करेंगे अम्न की बातें दिलों में बुग़्ज़ रक्खेंगे
यही रस्म-ए-जहाँ और फ़ितरत-ए-अक़वाम है साक़ी
अजय सहाब
ग़ज़ल
दिल तो आईना है शफ़्फ़ाफ़ रखें ऐ 'शाहिद'
क्यूँ करें बुग़्ज़-ओ-हसद किस लिए कीना सीखें
शाहिद माहुली
ग़ज़ल
प्यार के शहर में नफ़रत की हवाएँ क्यों हैं
हर तरफ़ बुग़्ज़-ओ-अदावत की सदाएँ क्यों हैं
अमीर अहमद ख़ुसरव
ग़ज़ल
हसद-ओ-बुग़्ज़-ओ-कीना ख़ुद-नुमाई हैं सभी फ़ित्ने
ये न होते अगर शैताँ ने इक सज्दा किया होता