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ग़ज़ल
सर-ब-ज़ानू थीं तमन्नाएँ न जाने कब से
चश्म-ए-'उम्मीद' भी ख़ूँ-नाबा-फ़शाँ है अब के
अली अब्बास उम्मीद
ग़ज़ल
न क्यूँ हम दीदा-ए-ख़ूँ-बार से गुल-कारियाँ कर लें
रहें आख़िर ब-उम्मीद-ए-बहार-ए-गुल-फशाँ कब तक
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
मुबारक जज़्ब-ए-उल्फ़त आज तो वो मेरी बालीं पर
ब-ग़रज़-ए-गुफ़्तुगू आया ब-उम्मीद-ए-कलाम आया
अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत
ग़ज़ल
ब-ज़ाहिर रौनक़ों में बज़्म-आराई में जीते हैं
हक़ीक़त है कि हम तन्हा हैं तन्हाई में जीते हैं