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ग़ज़ल
ब-नाम-ए-कूचा-ए-दिलदार गुल बरसे कि संग आए
हँसा है चाक-ए-पैराहन न क्यूँ चेहरे पे रंग आए
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
अज़ीज़ हामिद मदनी
ग़ज़ल
'फ़ज़ा' तुम उलझे रहे फ़िक्र ओ फ़लसफ़े में यहाँ
ब-नाम-ए-इश्क़ वहाँ क़ुरअ-ए-हुनर निकला