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ग़ज़ल
शैख़-ए-मक्का ने पढ़ाई है जनाज़े की नमाज़
लोग समझे मुझे क्या जानिए क्या मेरे बा'द
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
हम भी थे कभी ख़ूबी-ए-तक़दीर से 'परवीं'
अर्फ़ात में मुज़दल्फ़ा में मक्का में मिना में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ऐ सालिक इंतिज़ार-ए-हज में क्या तू हक्का-बक्का है
बघोले सा तू कर ले तौफ़-ए-दिल पहलू में मक्का है
वली उज़लत
ग़ज़ल
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
ग़ज़ल
हुआ अख़बार से साबित सवाब-ए-हज्ज-ए-अकबर है
ज़ियारत कर ले ऐ ग़ाफ़िल दिल-ए-आगाह मक्का है
इश्क़ औरंगाबादी
ग़ज़ल
मै-कदा से क़स्द मक्का का किया है क्या करें
तौबा हम से हो गई ऐ मय-परस्ताँ अलविदा'अ
इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन
ग़ज़ल
दिल की शादाबी की ख़ातिर दिल की तस्कीं के लिए
'रिज़वी'-ए-मुज़्तर कभी मक्का कभी मथुरा गए