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ग़ज़ल
ताऊन-ओ-तप और खटमल मच्छर सब कुछ है ये पैदा कीचड़ से
बम्बे की रवानी एक तरफ़ और सारी सफ़ाई एक तरफ़
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
रक़ीब-ए-सिफ़्ला-ख़ू ठहरे न मेरी आह के आगे
भगाया मच्छरों को उन के कमरों से धुआँ हो कर