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ग़ज़ल
जाने किस रंग में तफ़्सीर करें अहल-ए-हवस
मदह-ए-ज़ुल्फ़-ओ-लब-ओ-रुख़्सार करूँ या न करूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
हिकायात-ए-लब-ओ-रुख़्सार से आगे नहीं जाते
वो नग़्मे जो तुम्हारे प्यार से आगे नहीं जाते
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
जब ये आलम हो तो लिखिए लब-ओ-रुख़्सार पे ख़ाक
उड़ती है ख़ाना-ए-दिल के दर-ओ-दीवार पे ख़ाक
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
कुंज-ए-तन्हाई के अफ़्कार में क्या रक्खा है
ज़िक्र-ए-ज़ुल्फ़-ओ-लब-ओ-रुख़्सार में क्या रक्खा है
साबिर आरवी
ग़ज़ल
ज़ुल्फ़-ओ-लब-ओ-रुख़्सार के आज़र तो बहुत हैं
टूटे हुए ख़्वाबों का मसीहा नहीं मिलता
जाज़िब क़ुरैशी
ग़ज़ल
ज़ुल्फ़-ओ-लब-ओ-रुख़्सार किसी का है मेरा मौज़ू-ए-सुख़न
तारीकी से नूर-ए-नज़र तक एक कहानी बीच में है
बर्क़ी आज़मी
ग़ज़ल
काकुल-ओ-चश्म-ओ-लब-ओ-रुख़सार की बातें करो
ज़ुल्मत-ए-दौराँ में हुस्न-ए-यार की बातें करो
इम्तियाज़ ख़ान
ग़ज़ल
मर-मिटे हो जिस के तुम चश्म-ओ-लब-ओ-रुख़सार पर
उस बुत-ए-काफ़िर के बातिन का भी मंज़र देखना