आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "मरीज़-ए-ग़म-ए-इश्क़"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "मरीज़-ए-ग़म-ए-इश्क़"
ग़ज़ल
अजल इस्तादा है बालीं पे मरीज़-ए-ग़म-ए-इश्क़
आँख तो खोल ज़रा वक़्त है बेदारी का
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
है ये इब्तिदा ग़म-ए-इश्क़ की अभी ज़हर-ए-ग़म पिया जाएगा
कभी चाक होगा ये पैरहन कभी पैरहन सिया जाएगा