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ग़ज़ल
न हवा-ए-जाह-ए-सिकंदरी न हवस कि महफ़िल-ए-जम मिले
मिरे दोस्त तेरे दयार की मुझे ख़ाक ज़ेर-ए-क़दम मिले
अयाज़ आज़मी
ग़ज़ल
तिश्ना लबों को चूम कर कोई तो हो जो ये कहे
लश्कर-ए-मस्लिहत-शनास हट जा फ़ुरात छोड़ दे
सज्जाद बाबर
ग़ज़ल
बदन है सब्ज़ और शादाब लेकिन रूह प्यासी है
मिरे अंदर हज़ारों बाँझ पेड़ों की उदासी है
ख़ुर्शीद तलब
ग़ज़ल
वही जोश-ए-हक़-शनासी वही अज़्म-ए-बुर्द-बारी
न बदल सका ज़माना मिरी ख़ू-ए-वज़ा-दारी
जुर्म मुहम्मदाबादी
ग़ज़ल
मिरा अफ़्साना-ए-हस्ती अधूरा लिख दिया जाए
मिरी तक़दीर के ख़ाने में तन्हा लिख दिया जाए