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ग़ज़ल
हर मीना-बाज़ार से 'मेहदी' आँख बचा कर गुज़रा हूँ
पेट के रोग से फ़ुर्सत कब है दिल का रोग लगाए कौन
मेहदी प्रतापगढ़ी
ग़ज़ल
कुछ तो पास बचा कर रखो सब कुछ कारोबार न जानो
दिल के दरवाज़े मत खोलो इस घर को बाज़ार न जानो
बशीर बद्र
ग़ज़ल
मैं न हूँगा कभी तुझ से बुत-ए-अय्यार जुदा
आग पत्थर से नहीं होने की ज़िन्हार जुदा
मुंशी ठाकुर प्रसाद तालिब
ग़ज़ल
आशिक़-ए-ज़ुल्फ़-ओ-रुख़-ए-दिलदार आँखें हो गईं
मुब्तला-ए-काफ़िर-ओ-दींदार आँखें हो गईं
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
ये माना शीशा-ए-दिल रौनक़-ए-बाज़ार-ए-उल्फ़त है
मगर जब टूट जाता है तो क़ीमत और होती है