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ग़ज़ल
क्यूँ किया रहा जो मुक़ाबला ख़तरात-ए-गाम-ब-गाम से
सर-ए-बाम-ए-इश्क़-ए-तमाम तक रह-ए-शौक़-ए-नीम-तमाम से
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
वो अपने अपने तमाम साथी, तमाम महबूब ले के आएँ
तो मेरे हाथों में हाथ दे दे हमें भी इज़्न-ए-मुबाहला है
फ़रीहा नक़वी
ग़ज़ल
ख़ुदा के हाथ है अपना अब ऐ 'क़लक़' इंसाफ़
बुतों से हश्र में होगा मुक़ाबला दिल का
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
ख़ुदा के हाथ है अब अपना ऐ 'क़लक़' इंसाफ़
बुतों से हश्र में होगा मुक़ाबला दिल का