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ग़ज़ल
ख़िज़ाँ की रुत में गुलाब लहजा बना के रखना कमाल ये है
हवा की ज़द पे दिया जलाना जला के रखना कमाल ये है
मुबारक सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
गुलचीं ने तो कोशिश कर डाली सूनी हो चमन की हर डाली
काँटों ने मुबारक काम किया फूलों की हिफ़ाज़त कर बैठे
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
मुझे चाक-ए-जेब-ओ-दामन से नहीं मुनासिबत कुछ
ये जुनूँ ही को मुबारक रह-ओ-रस्म-ए-आमियाना
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
मिरी रात मुंतज़िर है किसी और सुब्ह-ए-नौ की
ये सहर तुझे मुबारक जो है ज़ुल्मतों की मारी