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ग़ज़ल
रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
सफ़र में मुश्किलें आएँ तो जुरअत और बढ़ती है
कोई जब रास्ता रोके तो हिम्मत और बढ़ती है
नवाज़ देवबंदी
ग़ज़ल
हमारे दौर में डालीं ख़िरद ने उलझनें लाखों
जुनूँ की मुश्किलें जब होंगी आसाँ हम नहीं होंगे
अब्दुल मजीद सालिक
ग़ज़ल
इसी उम्मीद पर तो काट लीं ये मुश्किलें हम ने
अब इस के ब'अद तो ऐ 'शाद' आसानी में रहना है
ख़ुशबीर सिंह शाद
ग़ज़ल
ऐसे भी राज़ हैं 'ख़ुमार' होते नहीं जो आश्कार
अपनी ही मुश्किलें न देख उन की भी बेबसी समझ
ख़ुमार बाराबंकवी
ग़ज़ल
फ़रोग़-ए-हुस्न से होती है हल्ल-ए-मुश्किल-ए-आशिक़
न निकले शम्अ' के पा से निकाले गर न ख़ार आतिश
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
राह-ए-तलब की मुश्किलें और ये मेरी ख़ुद-रवी
चारों तरफ़ हूँ मैं ही मैं कोई भी दूसरा नहीं
राजेन्द्र बहादुर माैज
ग़ज़ल
मुश्किल बहुत था चुप रहूँ सोचा बहुत कुछ न कहूँ
पर बात लब पे आ गई तो फिर गिला होने लगा
संदीप ठाकुर
ग़ज़ल
हौसलों के साथ तय कर राह-ए-दुश्वार-ए-हयात
हल तो होंगी मुश्किलें लेकिन ब-आसानी नहीं