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ग़ज़ल
इश्क़-मोहल्ले में अब यारो क्या कोई मा'शूक़ नहीं
कितने क़ातिल मौसम गुज़रे शोर हुए फ़रियाद हुए
जौन एलिया
ग़ज़ल
अब मोहल्ले भर के दरवाज़ों पे दस्तक है नसीब
इक ज़माना था कि जब मैं भी बहुत ख़ुद्दार था
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
हमारे घर से यूँ भाग जाने पे क्या बनेगा मैं सोचता हूँ
मोहल्ले-भर में कई महीनों तलक दहाई पड़ी रहेगी
आमिर अमीर
ग़ज़ल
चार घरों के एक मोहल्ले के बाहर भी है आबादी
जैसी तुम्हें दिखाई दी है सब की वही नहीं है दुनिया
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
मोहल्ले में उन्हें कहते हैं सब शर्रुन्निसा-बेगम
तो ये साबित हुआ ख़ैरुन्निसा में कुछ नहीं रक्खा
खालिद इरफ़ान
ग़ज़ल
मोहल्ले वाले मेरे कार-ए-बे-मसरफ़ पे हँसते हैं
मैं बच्चों के लिए गलियों में ग़ुब्बारे बनाता हूँ