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ग़ज़ल
रिश्ता-ए-तेग़-ओ-गुलू अब भी सलामत है 'फ़राज़'
अब भी मक़्तल की तरफ़ दिल सा जवाँ खेंचता है
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
जुलूस-ए-तेग़-ओ-अलम जाने किस दयार का है
पस-ए-ग़ुबार भी इक सिलसिला ग़ुबार का है
मोहम्मद अहमद रम्ज़
ग़ज़ल
सुना है तख़्त मुक़द्दर से हाथ आता है
ख़जिल हूँ राहत-ए-तेग़-ओ-सिपर उठा कर मैं
ग़ुलाम हुसैन साजिद
ग़ज़ल
ज़ुल्म के शो'ले भड़कते जा रहे हैं हर तरफ़
ज़िंदगी क्या है हदीस-ए-तेग़-ओ-ख़ंजर हो गई
वजाहत अली संदैलवी
ग़ज़ल
निकाली रस्म-ए-तेग़-ओ-तश्त दिली में जज़ाक-अल्लाह
कि मारा तो हमें तू ने पर इक एज़ाज़ से मारा