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ग़ज़ल
ये हूर-ए-बहिश्ती की तरफ़ से है बुलावा
लब्बैक कि मक़्तल का सिला मेरे लिए है
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
किस की कश्ती तह-ए-गिर्दाब-ए-फ़ना जा पहुँची
शोर-ए-लब्बैक जो 'फ़ानी' लब-ए-साहिल से उठा
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
हो ये लब्बैक-ए-हरम या ये अज़ान-ए-मस्जिद
मय-कशो क़ुलक़ुल-ए-मीना की सदा याद रहे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
इज़्ज़त-ए-नफ़्स का है ये तक़ाज़ा हुस्न-ए-सुलूक करें दोनों
उस को हम लब्बैक कहेंगे रस्म-ए-वफ़ा निभाए तो
बर्क़ी आज़मी
ग़ज़ल
मेरे हर सज्दे से लब्बैक की आवाज़ आई
आस्ताँ भी तो मिरे नज़्द-ए-जबीं आ पहुँचा