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ग़ज़ल
उर्फ़ी आफ़ाक़ी
ग़ज़ल
कोह थर्राते हैं लर्ज़ें हैं ज़मीन ओ आसमान
आशिक़-ए-मौला की फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ को इश्क़ है
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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कोह थर्राते हैं लर्ज़ें हैं ज़मीन ओ आसमान
आशिक़-ए-मौला की फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ को इश्क़ है