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ग़ज़ल
इतना एहसाँ और कर लिल्लाह ऐ दस्त-ए-जुनूँ
बाक़ी गर्दन में फ़क़त तार-ए-गरेबाँ रह गया
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
नज़्अ' में सूरा-ए-यूसुफ़ कोई लिल्लाह पढ़े
दम भी निकले तो मरूँ सुन के मैं अफ़्साना-ए-इश्क़
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
हवाओ एक पल के वास्ते लिल्लाह रुक जाओ
वो मेरी अर्ज़ पर धीमे से कुछ इरशाद करते हैं
सरस्वती सरन कैफ़
ग़ज़ल
ले चलो लिल्लाह कोई ख़िज़्र-ए-मीना के हुज़ूर
आलम-ए-गुम-गश्तगी की राह बतलाए मुझे