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ग़ज़ल
होश-ओ-जुनूँ भी अब तो बस इक बात हैं 'फ़िराक़'
होती है उस नज़र की शरारत कहाँ कहाँ
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
पुराने दोस्तों से अब मुरव्वत छोड़ दी हम ने
मु'अज़्ज़िज़ हो गए हम भी शराफ़त छोड़ दी हम ने
शहज़ाद अहमद
ग़ज़ल
हंगामा-ए-ग़म से तंग आ कर इज़हार-ए-मसर्रत कर बैठे
मशहूर थी अपनी ज़िंदा-दिली दानिस्ता शरारत कर बैठे
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
ग़ज़ब की फ़ित्ना-साज़ी आए है उस आफ़त-ए-जाँ को
शरारत ख़ुद करे है और हमें तोहमत लगा दे है