आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "शुग़्ल-ए-मय-परस्ती"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "शुग़्ल-ए-मय-परस्ती"
ग़ज़ल
शुग़्ल-ए-मय-परस्ती गो जश्न-ए-ना-मुरादी था
यूँ भी कट गए कुछ दिन तेरे सोगवारों के
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
हम से खुल जाओ ब-वक़्त-ए-मय-परस्ती एक दिन
वर्ना हम छेड़ेंगे रख कर उज़्र-ए-मस्ती एक दिन
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ये साक़ी की करामत है कि फ़ैज़-ए-मय-परस्ती है
घटा के भेस में मय-ख़ाने पर रहमत बरसती है
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
मजलिस-ए-वाज़ में क्या मेरी ज़रूरत नासेह
घर में बैठा हुआ शुग़ल-ए-मय-ओ-मीना न करूँ
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
मुर्शिद-ए-मय-ख़ाने के क़दमों पे सर पाता हूँ मैं
अब दिमाग़-ए-मय-परस्ती अर्श पर पाता हूँ मैं
शफ़ीक़ जौनपुरी
ग़ज़ल
यहाँ तक तो निभाया मैं ने तर्क-ए-मय-परस्ती को
कि पीने को उठा ली और लीं अंगड़ाइयाँ रख दी
साइल देहलवी
ग़ज़ल
कितने साक़ी हैं कि हैं जाम-ब-कफ़ कल की तरह
शुग़्ल-ए-मय है कि 'सहर' बार-ए-गराँ आज भी है
अबु मोहम्मद सहर
ग़ज़ल
ज़हर-ए-चश्म-ए-साक़ी में कुछ अजीब मस्ती है
ग़र्क़ कुफ़्र ओ ईमाँ हैं दौर-ए-मय-परस्ती है
रविश सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
निहाल सेवहारवी
ग़ज़ल
हबीब मूसवी
ग़ज़ल
नाज़िश हैदरी
ग़ज़ल
नज़्र-ए-तौबा हम करेंगे मय-परस्ती एक दिन
ढूँढती रह जाएगी ये बज़्म-ए-मस्ती एक दिन