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ग़ज़ल
ये बज़्म-ए-मोहब्बत है इस बज़्म-ए-मोहब्बत में
दीवाने भी शैदाई फ़रज़ाने भी शैदाई
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
हर मोड़ पे मिल जाते हैं अभी फ़िरदौस-ओ-जिनाँ के शैदाई
तुझ को तो अभी कुछ और हसीं ऐ आलम-ए-इम्काँ होना था
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
सब को सुनाए क़िस्से तू ने जिस की धोके-बाज़ी के
उस जैसा ही पाएगी तू अपने हर शैदाई को