aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "सँभालता"
दिल में कुछ यूँ सँभालता हूँ ग़मजैसे ज़ेवर सँभालता है कोई
और तो अहल-ए-दर्द कौन सँभालता भलाहाँ तेरी शादमानियाँ उन को रुला के रह गईं
ये मुझ में कौन मिरे रात दिन सँभालता हैइस इख़्तियार से निकलूँ तो और कुछ सोचूँ
ज़र-ए-सरिश्क फ़ज़ा में उछालता हुआ मैंबिखर चला हूँ ख़ुशी को सँभालता हुआ मैं
साक़ी सँभालता है तो जल्दी मुझे संभालवर्ना उड़ा के पाँ नशा-ए-बंज ले चला
ख़याल-ए-यार तेरी निगहदाशत इस तरह हुईदिमाग़ थक के सो गया तो दिल सँभालता रहा
ज़मीन तलवों से आ चिमटती है आग बन करहथेलियों पर जब आसमाँ को सँभालता हूँ
मिरी ही तरह था वो भी जुनूँ की ज़द में मगरमुझे सँभाल के ख़ुद को सँभालता भी गया
सँभालता हूँ बड़ी मुरव्वत से अपने दिल में तुम्हारे तोहफ़ेमिरी तरफ़ से तुम्हारे बख़्शे अलम का बस एहतिराम दुख है
हर घड़ी मैं बिखरती रहती हूँहर घड़ी वो सँभालता है मुझे
इक तसलसुल से एक अज़िय्यत को जानिब-ए-दिल उछालता है कोईएक मुश्किल से नीम-जाँ हो कर ख़ुद को कैसे सँभालता है कोई
नदीम तेरा तो इस में कोई मफ़ाद नहींमैं गिर रहा हूँ तू मुझ को सँभालता क्यों है
बिखरते जिस्म को कैसे सँभालता कोईसुकूत-ए-शहर में जब ज़ोर से हवा आई
सँभालता है तिरा दस्त-ए-मो'तबर मुझ कोतो किस लिए हो कोई ख़ौफ़ या ख़तर मुझ को
शिकस्त-ओ-मर्ग में जब तर्ज़-ए-आसमाँ है तो फिरतू अपने टूटे हुए पर सँभालता क्यों है
जैसे कोई सँभालता है अपने ज़ेवरातहम को सँभालती हैं यूँ आ कर उदासियाँ
लबों पे शिकवा न लाऊँगा आँख में आँसूतिरी हर एक निशानी सँभालता हूँ मैं
मैं फ़ज़ा में था बर्ग-ए-आवाराख़ुद को कैसे सँभालता साईं
पलट पलट के नज़ारों को देखने वालाक़दम क़दम पे नज़र को सँभालता जाए
जो लम्हा लम्हा धँसा जा रहा था दलदल मेंग़मों के बोझ वो आख़िर सँभालता कब तक
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