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ग़ज़ल
संसार से भागे फिरते हो भगवान को तुम क्या पाओगे
इस लोक को भी अपना न सके उस लोक में भी पछताओगे
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
ओस में भीगे शहर से बाहर आते दिन से मिलना है
सुब्ह-तलक संसार रहे तो हम को जल्द जगा देना
रईस फ़रोग़
ग़ज़ल
गोरी इस संसार में मुझ को ऐसा तेरा रूप लगे
जैसे कोई दीप जला हो घोर अँधेरे जंगल में