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ग़ज़ल
पड़ गया हुस्न-ए-रुख़-ए-यार का परतव जिस पर
ख़ाक में मिल के भी इस दिल की सफ़ाई न गई
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
हुआ अगर शौक़ आइने से तो रुख़ रहे रास्ती की जानिब
मिसाल-ए-आरिज़ सफ़ाई रखना ब-रंग-ए-काकुल कजी न करना