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ग़ज़ल
तम मेरे ख़यालों में खो कर बर्बाद न करना जीवन को
जब कोई सहेली बात तुम्हें समझाए कभी तो मत रोना
हसरत जयपुरी
ग़ज़ल
वो तुम्हारी इक सहेली बन गई थी जो दुल्हन
उस से ख़त लिख कर कभी पूछा निहाँ अच्छी तो हो