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ग़ज़ल
मिरे उस्ताद को फ़िरदौस-ए-आ'ला में मिले जागा
पढ़ाया कुछ न ग़ैर-अज़-इश्क़ मुझ को ख़ुर्द-साली में
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
नासिर अमरोहवी
ग़ज़ल
रगों में ख़ून की हिद्दत से ख़ुश्क-साली है
मैं उस रवानी को रस्म-ए-जुमूद सौंपता हूँ
काज़िम हुसैन काज़िम
ग़ज़ल
हुआ बिन्त-ए-इनब से अक़्द इस पीराना-साली में
मुबारक हो मुझे साक़ी बुढ़ापे में शबाब आया
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
क्या बहार-ओ-ख़ुश्क-साली क्या 'उरूज और क्या ज़वाल
कल ज़मीन-ओ-आसमाँ मुझ को बहम होने को है