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ग़ज़ल
सिधारी मंज़िल-ए-हस्ती से कुछ बे-ए'तिनाई से
तन-ए-ख़ाकी को शायद रूह ने गर्द-ए-सफ़र जाना
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
देश से जब प्रदेश सिधारे हम पर ये भी वक़्त पड़ा
नज़्में छोड़ी ग़ज़लें छोड़ी गीतों का बेवपार किया
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
शजर सकते में हैं ख़ामोश हैं बुलबुल नशेमन में
सिधारा क़ाफ़िला फूलों का सन्नाटा है गुलशन में
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
करते हैं अपने ज़बानों में तिरे हाथों का वस्फ़
बोलती हैं एक मुँह हो कर सितारी चूड़ियाँ
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
रू-ब-रू उस के कभू बात न सुधरी हम से
हिल्म है चैन है दहशत है हया है क्या है