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ग़ज़ल
राह-ए-वफ़ा में जाँ देना ही पेश-रवों का शेवा था
हम ने जब से जीना सीखा जीना कार-ए-मिसाल हुआ
अतहर नफ़ीस
ग़ज़ल
हम ने कब ये गुर सीखा हम ठहरे सीधे-सादे लोग
जिस की जैसी फ़ितरत देखें उस से वैसी बात करें