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ग़ज़ल
लहू से हर्फ़ तराशें जो मेरी तरह उम्मीद
उन्हीं के हिस्से में ज़ख़्म-ए-हुनर भी आता है
उम्मीद फ़ाज़ली
ग़ज़ल
सर-ब-ज़ानू थीं तमन्नाएँ न जाने कब से
चश्म-ए-'उम्मीद' भी ख़ूँ-नाबा-फ़शाँ है अब के
अली अब्बास उम्मीद
ग़ज़ल
'हश्र' मेरी शे'र-गोई है फ़क़त फ़रियाद-ए-शौक़
अपना ग़म दिल की ज़बाँ में दिल को समझाता हूँ मैं
आग़ा हश्र काश्मीरी
ग़ज़ल
मुतरिब से ये कहता था 'हश्र' अपनी ग़ज़ल सुन कर
है मेरी जवानी का भूला हुआ अफ़्साना
आग़ा हश्र काश्मीरी
ग़ज़ल
हम-सफ़र शाइस्तगी थी रहगुज़ार-ए-ज़ीस्त में
फिर भी जिस से बात की हर बात गाली हो गई
अली अब्बास उम्मीद
ग़ज़ल
शिकवा-ए-वादा-ख़िलाफ़ी का मिला अच्छा जवाब
पेशगी रक्खी थी इक उम्मीद बर आई हुई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
है 'शकील-इब्न-ए-शरफ़' के दिल में बस ये आरज़ू
हश्र में दुनिया कहे इस को दिवाना आप का