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ग़ज़ल
कब याद में तेरा साथ नहीं कब हात में तेरा हात नहीं
सद-शुक्र कि अपनी रातों में अब हिज्र की कोई रात नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
कभी ला ला मुझे देते हो अपने हात सीं प्याला
कभी तुम शीशा-ए-दिल पर मिरे पथराव करते हो