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ग़ज़ल
हर तरफ़ दीवार-ओ-दर और उन में आँखों के हुजूम
कह सके जो दिल की हालत वो लब-ए-गोया नहीं
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
इश्क़ की हालत कुछ भी नहीं थी बात बढ़ाने का फ़न था
लम्हे ला-फ़ानी ठहरे थे क़तरों की तुग़्यानी थी
जौन एलिया
ग़ज़ल
मुझे हुस्न ने सताया, मुझे इश्क़ ने मिटाया
किसी और की ये हालत कभी थी न है न होगी