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ग़ज़ल
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
नसीम-ए-सुब्ह गुलशन में गुलों से खेलती होगी
किसी की आख़िरी हिचकी किसी की दिल-लगी होगी
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
वो रश्क-ए-ग़ैर पर रो रो के हिचकी मेरी बंध जाना
फ़रेबों से वो तेरा शक मिटाना याद आता है
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
मिरी बे-साख़्ता हिचकी मुझे खुल कर बताती है
तिरे अपनों को गाओं में तो अक्सर याद आता है